Tuesday, September 20, 2011

उजियारा : एक परिचय

घनघोर अन्धेरे कि चादर में ,
        चमक उठा जब एक तारा |
मानो मेरे जीवन का वो ,
                 था प्रथम उजियरा ||


कितनी अच्छी तरह से जानते है हम उजाले को और अन्धेरे को भी....। दिन मे उजाला होता है और रात मे अन्धेरा। अन्धेरे मे सिर्फ एक ही रंग होता है- काला और उजाले मे दुनिया रंग-बिरंगी, हजारों रंगो से सजी....। एक और अन्तर भी है अन्धेरे में और उजाले में, जो बाहर से बहुत मामूली है पर भीतर बहुत गहरा..। दिन के उजाले में हमें सब दिखता है, हम जानते है कि किस ओर जा रहें है। वहीं अन्धेरा आखें खुली होनें के बाद भी उनसे देखनें का गुण छीन लेती है। भुला देती है रास्तों कि पहचान को। और रस्तें ही तो है जो तय करते है मन्जिल को...। रस्ता सही तो मन्जिल मिल जाती  है और रास्ता गलत तो मिलती है केवल निरशा...। आशा और निराशा के इस संघर्श में कही एक किरण नजर आयी..... जिसे नाम दिया.. उजियारा ।
उजियारा एक पहल है, अन्धेरे से उजाले कि ओर। अवनति से उन्नति  और अपमान से सम्मान कि ओर। कहते हैं कि सम्मान अर्जित किया जाता है। हाँ , सही ही तो है ...। सम्मान तब मिलता है जब हम सबल हों, आत्मनिर्भर  हो।
                 समाज कि सभी विषमताओ के पिछे कही ना कही सम्मान कि बहुत बडी भूमिका है। किसी वर्ग को अधिक सम्मान मिला तो वो गर्वित हो गया। उत्क्रष्ट ने हीन को दबाया और वो दबता रहा....। खुद को छोटा और दूसरों को बडा समझ कर..। और फिर कभी किसी में जाग उठा  स्वाभिमान का वह सम्मान तत्व !... आक्रोशित... विस्फोट बन होता है उद्गार... शुरु हो जाता है संघर्श ... ।
  मानो समाज का पूरा ढाँचा ही सम्मान पर टिका है। सम्मान आधारित है आत्मनिर्भरता पर। समाज में पराश्रित को कभी सम्मन नही मिलता। और व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाती है.... शिक्षा !
                पर आज के बाजारिकरण के दौर में शिक्षा व्यवसाय बन गयी है । शयद व्यवसाय भी नही... बाजारु हो गयी है । शोषण इसका एक मात्र उद्देश्य बन कर रह गया है। शिक्षा के इस उद्योग में मुनाफे का मतलब सिर्फ पैसा है। अगर पैसा है तो आप कोई भी शिक्षा ले सकते हो । और पैसा नही तो कोई भी पढाई आपके लिये नही..। भारत कि वर्तमान शिक्षा पद्यत्ति के इसि आचरण को बदलना है। शिक्षा सबके लिये है.. और एक समान। अमीर हो या गरीब, चाहे जाति, धर्म, वर्ग कोई भी हो शिक्षा का स्वरुप सबके लिये एक होना चाहिये। और शिक्षा ऐसी जिसके चुनाव का अधिकार मेरा हो। अपनी रुचि, अपनी क्षमता के अनुसार। भारत इन्जिनियर्स और डाक्टरों  का थोक विक्रेता बनने के बारे में ना सोचे। शिक्षा का चयन रुचि के आधार पर हो.. सामाजिक प्रतिष्ठा के आधार पर नही। क्योंकि शिक्षा स्वयं में प्रतिष्ठित है, चाहे वह किसी भी क्षेत्र में ली गयी हो..।
                 स्वप्न है एक आधुनिक, एक समान, व्यवहारिक और रचनात्मक शिक्षा का जो चरित्र, मूल्यों,व्यक्तित्व का निर्माण कर सके। जो आधार बन सकें भविष्य का... जहाँ शिक्षा के चयन का आधार रुचि हो सामाजिक प्रतिष्ठा नही। शिक्षा का पथ ऐसा हो जो आगे चल कर हजारों रास्तें खोल दे..। जो जिविकोपर्जन का साधन बन सके... जो दे सके एक व्यापक दृष्टिकोण...। ऐसी शिक्षा जो बाजार के नियमों का पालन न करें... और ना ही प्रभावित हो उससे ।
                शिक्षा के इसी रुप को यथर्थ बनाने वाली आशाकिरण है उजियारा ....।